Friday, September 10, 2010

साँसों की सरगम...

हम आदतन ही सांस लेते हैं और ज़िंदगी चलती रहती है
चुपचाप अपने आप शकलें बदलती रहती हैं...

कभी जीत कभी हार और कभी कभी ढेर सारा प्यार
ज़िंदगी इन्ही लफ़्ज़ों मे ढलती रहती है…

कभी तुम्हारे कदमो से गुज़र जाएगी, कभी हमारी राहों मे अटक जाएगी
और कभी कभी अजनबी बनके खो जाएगी...

एक दिन साँसों की ये सरगम भी ख़त्म होगी
फिर ज़िंदगी वहीं रुक जाएगी…चुपचाप अपने आप...

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