Sunday, January 2, 2011

तुम क्या जानो....

तुम क्या जानो हम ने खुद को कितना तडपया है
जिसके हँसने से हंसते थे,उसको ही गँवाया है...

खोने की गिनती मत पूछो
कुछ भी कभी नही पाया है

काल ने ऐसा घेरा मुझको दिलका रिश्ता भी टूटा
बेबस होना क्या होता है,अब समझ मे आया है

कभी हारा तो कभी जीत गया
मन का जो था वो भी मीत गया

गाया करता था जिसको पागलपन से
वो भी तो अब गीत गया....

दिन चढ़े तक सोते रहना,खामोशी से रोते रहना
इनको आदत के तौर पे पाया है

तुम क्या जानो...

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